कानपुर देहात में पिता की मौत पर दोनों बेटों ने धोखेबाजी कर हथियाई अध्यापक की नौकरी, हुआ खुलासा

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– मृतक आश्रित कोटे के तहत एक व्यक्ति से अधिक को नहीं दी जा सकती है नौकरी

कानपुर देहात। बेसिक शिक्षा विभाग में मृतक आश्रित के तहत हुईं नियुक्तियों में गोलमाल सामने आया है। ऐसे एक प्रकरण की शिकायत जनपद के ही एक शिक्षक द्वारा ही की गई है जिसके बाद वित्त एवं लेखाधिकारी ने जांच के लिए बीएसए को पत्र लिखा है।

उत्तर प्रदेश जूनियर शिक्षक संघ कानपुर देहात के जिलाध्यक्ष अशोक सिंह ने अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त अपने बड़े भाई संतोष सिंह के प्रा.वि.भेंवरपुर मैंथा कानपुर देहात में सहायक अध्यापक पद पर कार्यरत होने सम्बन्धी तथ्यों को छिपाकर मृतक आश्रित सेवा नियमावली के विपरीत नियुक्ति प्राप्त की। मृतक आश्रित कोटे से दोनों भाइयों ने नौकरी प्राप्त की है।
अशोक सिंह के पिता श्याम पाल सिंह की मृत्यु 10/11/1981 को हुई तो उनके बड़े भाई संतोष सिंह ने मृतक आश्रित कोटे में राजकीय दीक्षा विद्यालय नरवल कानपुर देहात से 1984 से 1986 तक बीटीसी का प्रशिक्षण प्राप्त कर बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति प्राप्त की। इसके उपरांत अशोक सिंह ने मृतक आश्रित के तौर पर जनपद कानपुर देहात में सहायक अध्यापक के पद पर 3/4/1987 को नियुक्ति प्राप्त कर ली। विभाग ने आंख बंद करके नियुक्ति की क्योंकि मृतक आश्रित कोटे में सिर्फ एक ही व्यक्ति को नौकरी दिए जाने का प्रावधान है इसके अलावा मृतक आश्रित कोटे पर नौकरी पाने के लिए पात्रता की श्रेणी में आने वाले अगर पांच वर्ष तक नौकरी के लिए आवेदन नहीं करते हैं तो उनका अधिकार समाप्त हो जाता है। कार्मिक विभाग की नियमावली के मुताबिक मृतक आश्रित कोटे पर नौकरी के लिए पात्रता की श्रेणी में आने वाले को संबंधित विभाग में 5 साल के अंदर ही आवेदन करना होता है लेकिन अशोक सिंह ने 6 साल बाद नौकरी के लिए आवेदन किया। अशोक सिंह वर्तमान में उ०प्रा०वि० नेवादा बारा वि.स. मैथा में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हैं तो उनके बड़े भाई संतोष कुमार सिंह प्रा०वि० भँवरपुर वि.ख.मैथा में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।
इस संदर्भ में शिक्षक नीलेश कुमार यूपीएस ऑगी मैंथा कानपुर देहात ने बेसिक शिक्षा अधिकारी एवं वित्त एवं लेखाधिकारी को शिकायत की है। वित्त एवं लेखाधिकारी शिवा त्रिपाठी ने पत्र का संज्ञान लेते हुए बेसिक शिक्षा अधिकारी रिद्धी पाण्डेय को पत्र लिख जांच कमेटी गठित करते हुए जल्द से जल्द आवश्यक कार्यवाही करने का अनुरोध किया है।


बताते चलें संतोष सिंह एवं अशोक सिंह के पिता श्याम पाल सिंह की मृत्यु शिक्षक पद पर कार्यरत रहते हुए दिनांक 10 नवंबर 1981 को हुयी।उस समय के शासनादेश के अनुसार मृतक आश्रित को उसकी शैक्षिक मेरिट पर ध्यान ना देकर उसे पहले बीटीसी कराई जाती थी तथा तत्काल उसी जनपद में नियुक्ति सहायक अध्यापक पद पर कर दी जाती थी।इसी शासनादेश का लाभ लेकर संतोष सिंह ने वर्ष 1984-1986 में बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त किया जबकि सामान्य वर्ग के हिसाब से इनकी मेरिट बहुत ही कम है। सामान्य अभ्यर्थी को हाई स्कूल या इंटर में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। इधर संतोष सिंह का प्रशिक्षण पूर्ण हुआ उधर चौथे वेतन आयोग में मृतक आश्रित इन्टरमीडिएट पास अभ्यार्थी की सीधी भर्ती करने का आदेश आ गया।

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इस आदेश का लाभ अशोक सिंह ने मई 1987 में ले लिया तथा संतोष सिंह ने बाहर जनपद में जाकर बीटीसी के आधार पर नौकरी पा ली कारण कि बीटीसी के अंकपत्र या प्रमाण पत्र पर मृतक आश्रित का कोई उल्लेख नहीं होता है। इस प्रकार संतोष सिंह ने मृतक आश्रित कोटे का लाभ बीटीसी में लिया और अशोक सिंह ने मृतक आश्रित के रूप में नियुक्ति में। इस प्रकार दोनों भाईयों अशोक सिंह तथा संतोष सिंह
ने अपने शातिर दिमाग से एक ही मृतक आश्रित कोटे में नौकरी प्राप्त कर लीं जो सर्वथा गलत है। मृतक आश्रित नियमावली के अनुसार सिर्फ एक ही व्यक्ति को नौकरी दी जा सकती है।
वित्त एवं लेखाधिकारी शिवा त्रिपाठी ने बताया कि इस संदर्भ में शिकायत मिली है जिसके तहत मामला काफी गंभीर होने के कारण जांच होना जरूरी है। इसी के चलते बीएसए को उक्त प्रकरण की जांच कराए जाने के लिए लिखा है, फिलहाल अशोक सिंह का वेतन रोक दिया है।

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