आईआईटी कानपुर की “माटी कला” कार्यशाला कुम्हारों को बनाएगी सबल

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रंजीत सिंह रोजी शिक्षा केंद्र की ओर से ट्रांसफॉर्मेटिव पॉटर वर्कशॉप का आयोजन किया

मुख्य संवाददाता

कानपुर, 03 जून । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर में 30 मई से तीन जून तक उन्नत भारत अभियान के तहत चलने वाली “माटी कला” कार्यशाला का समापन शनिवार को हुआ। कार्यशाला के अंतर्गत रणजीत सिंह रोजी शिक्षा केंद्र में मिट्टी के बर्तन बनाने की अभ्यास कराय गया।

“माटी कला” कार्यशाला का उद्देश्य मिट्टी के बर्तन बनाने के नए तरीकों के साथ बिठूर के कुम्हारों को तैयार करना है। आरएसके में गतिविधियों का समन्वय कर रही रीता सिंह के मुताबिक, ‘यह केंद्र बिठूर और उसके आसपास के गांवों के 100 से अधिक कुम्हारों से जुड़ा है। इस पांच दिवसीय कार्यशाला का उद्देश्य 10 चयनित कुम्हारों के साथ काम कर उन्हें कौशल और ज्ञान देना था। धीरे-धीरे उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होगा और बाजार में उनकी अपील बेहतर होगी।

गोंडा के उस्ताद कारीगर और राज्य पुरस्कार विजेता हरि राम ने कुम्हारों को प्रशिक्षण दिया। एक बातचीत में उन्होंने बताया, ‘हम युगों से चली आ रही इस खूबसूरत कला को सहेजना चाहते हैं। प्लास्टिक और मशीन से बने उत्पादों के आने से मिट्टी के बर्तनों से जुड़ी गतिविधियां कम हो गई हैं।’ उन्हें लगता है कि नया उत्पाद जो बाजार की मांग से मेल खाता है, दस्तकारी मिट्टी के बर्तनों को बचा सकता है।

प्रशिक्षण के दौरान कुम्हारों ने न केवल मिट्टी के बर्तन बनाने के नए तरीके सीखे बल्कि आईआईटी कानपुर की ढलाई प्रयोगशाला, कानपुर विश्वविद्यालय की मिट्टी के बर्तन बनाने की प्रयोगशाला और लता क्रिएशन (मिट्टी के बर्तन बनाने का कारखाना) का दौरा भी किया। अंत में प्रतिभागियों ने अपने उत्पादों का प्रदर्शन किया और उन्हें प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया।

प्रतिभागी युवा कुम्हार थे जो पचौर, मंधाना, नारामऊ, बैकुंठपुर, लक्ष्मीपुरवा और तात्या टोपे नगर से आए थे। मैटेरियल्स साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर कल्लोल मंडल ने सरफेस फिनिश में कास्टिंग और इनोवेशन के टिप्स दिए।डिजाइन विभाग के प्रोफेसर सत्यकी रॉय ने उच्च गुणवत्ता वाली फिनिश हासिल करने और विशिष्ट बाजारों की खोज के बारे में बात की।

जिला उद्योग केंद्र कानपुर के महाप्रबंधक एसएल यादव ने तैयार उत्पादों की सराहना की और विभिन्न योजनाओं के बारे में बताया जिसका लाभ कुम्हार अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए उठा सकते हैं। प्रोफेसर संदीप सांगल और प्रोफेसर सुधांशु शेखर सिंह, प्रोफेसर शतरूपा रॉय भी मौजूद थे।

प्रतिभागी विकास के अवसर को गले लगाने के लिए उत्सुक हैं, और उन्होंने अपने कलात्मक क्षितिज को सीखने और विस्तारित करने के अवसर के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के लिए कार्यशाला की पेशकश की अपार संभावनाओं को पहचाना।
आईआईटी कानपुर में “माटी कला” मिट्टी के बर्तनों की कार्यशाला आयोजकों और प्रतिभागियों दोनों की प्रतिबद्धता और जुनून के लिए एक वसीयतनामा के रूप में है। इस पहल के माध्यम से रणजीत सिंह रोजी शिक्षा केंद्र का उद्देश्य प्राचीन कलात्मकता और आधुनिक मांगों के बीच की खाई को पाटना है, जिससे एक समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो सके जहां मिट्टी के बर्तनों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पनपती रहे।

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