आपातकाल : तानाशाही शासन के दौर में भी आवाज बुलंद कर बने लोकतंत्र रक्षक सेनानी

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कानपुर देहात, 25 जून । आपातकाल के दो वर्षों को तानाशाही का समय बताकर आज भी एक डॉक्टर उस समय को भुला नही पा रहे हैं। उनका कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रा गांधी ने उस वक़्त तानाशाही रवैया दिखाते हुए इमरजेंसी लगाई और लोगों की नसबंदी शुरू कर दी। उनके इस तानाशाही रवैये से लोगों में काफी आक्रोश था । उस व्वक्त कानपुर देहात के सैकड़ों लोगों को जेल में डाला गया जिसमें से एक वो भी थे।

कानपुर देहात के रूरा थानाक्षेत्र के भीखनापुर में रहने वाले डॉक्टर फूल सिंह जिनकी उम्र 25 जून 1975 में लगभग 35 वर्ष थी। उस आपातकाल के दौरान वह प्राइवेट प्रेक्टिश करते थे। संघ में जुड़ाव के कारण वह कभी- कभी कानपुर में शाखा में भी जाते थे। जैसे ही देश मे आपातकाल लगा और इंदिरा गांधी की सरकार ने नसबंदी का ऐलान किया पूरे देश मे लोग छुपने लगे। उस वक़्त कानपुर देहात जनपद कानपुर नगर में ही आता था। डॉक्टर साहब बताते हैं की कानपुर से उस वक़्त एक तलवार जी आते थे और जनपद के लोगों को गुट बनाकर जागरूक करते थे। इसमें लगभग 300 लोगों की एक टीम इस नसबंदी के विरोध कर रही थी। वहीं उस वक़्त डॉ राम सिंह कानपुर देहात से इस टीम की अगुवाई करते थे। लोगों को एकत्रित करते हुए लगातार मीटिंग होती थीं। राम सिंह जी की मृत्यु बीते तीन वर्ष पहले ह्रदय गति रुकने से हो गई। इसी दौरान किसी को जानकारी हुई और लगभग 25 लोगों को कानपुर देहात के बाढ़ापुर से उठाकर कानपुर जेल के डाल दिया गया था। इसी दौरान लगबग 250 लोगों की नसबंदी भी कर दी गई थी। इनमें कुछ डॉक्टर, वकील और नामचीन लोग थे। डॉ फूल सिंह बताते हैं वह जेल में लगभग 45 दिन रहे लेकिन उस दौरान यह लगता था कि शायद वो जेल से रिहा ही नही हो पाएंगे। जमानत का कोई इंतजाम नही होता था। डॉक्टर साहब की इस समय उम्र लगभग 79 वर्ष है और मौजदा समय मे उनके पौत्र शुधांशु सिंह पशु चिकित्सक के रूप में लोगों को सेवा कर रहे हैं।

तनाशाही समय था आपातकाल

डॉक्टर फूल सिंह ने बताया कि आपातकाल के समय मे जो आवाज उठाता था उसकी आवाज बंद करने के लिए उसको जेल में डाल दिया जाता था। वो बताते हैं कि उस दौरान सुना यह भी था कि इनके लोग इतने क्रूर हो गए थे कि नबजात शिशुओं की दूध की बोतलों को भी तोड़ दिया जाता था।

वो दौर था कष्टकारी, और उससे उभरे

डॉ फूल सिंह ने बताया कि बीते वो दो वर्ष काफी कष्टकारी रहे। उन्होंने बताया लोग डर में जीते थे बाहर निकलने से डर लगता था। उस दौर में भी कुछ ऐसे लोग थे जो आम लोगो की आवाज बनकर उभरे थे। यही कारण था जेल में बंद होनेके बाद भी आवाज बुलंद थी। पुलिस और सरकार का लगातार दवाब था उसके बाद भी लोगों ने डटकर सामना किया।

500 से शुरू हुई पेंशन 20 हजार हुई

डॉक्टर साहब ने बताया की आपातकाल खत्म होने के बाद संघ के पदाधिकारियों ने तत्कालीन मुलायम सिंह की सरकार से कई लोगों की पेंशन शुरू करवाई थी। जिसकी शुरुआत 500 रुपये से हुई थी। मौजूदा समय मे लगभग 104 लोगों को जनपद में यह पेंशन मिल रही है। जो कि 20 हजार रुपये प्रति माह मिल रही है। इस पेंशन से गुजारा तो हो रहा है पर उस समय को याद करके आज भी रूह कांप जाती है।

 

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